Monday, September 17, 2018

मैंगकूट तूफ़ान ने फिलीपींस में 25 लोगों की जान ली

तूफ़ान मैंगकूट की वजह से फिलीपींस में कम से कम 25 लोग मारे गए हैं. तूफ़ान ने देश के उत्तरी हिस्से में भारी तबाही मचाई है.
फिलीपींस के लुज़ोन द्वीप को तहस-नहस करने के बाद मैंगकूट तूफ़ान अब पश्चिम में चीन की ओर बढ़ रहा है.
तूफ़ान की वजह से फिलीपींस में घरों की छतें उड़ गई हैं, बड़ी संख्या में पेड़ गिरे हैं और  जगहों पर भूस्खलन हुआ है.
तूफ़ान, बारिश और बाढ़ के कारण पचास लाख लोग प्रभावित हुए हैं. हज़ारों लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया है.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने इस तूफ़ान को मौजूदा साल में अब तक का सबसे शक्तिशाली चक्रवाती तूफ़ान माना है.
क़रीब दो दशकों से हिंदी सिनेमा में बतौर निर्देशक, निर्माता और लेखक के तौर पर काम कर रहे अनुराग कश्यप ने फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनाई है. उनकी फ़िल्में वास्तविकता के क़रीब होती हैं.
जहां फ़िल्म 'ब्लैक फ़्राइडे' 1993 बॉम्बे बम ब्लास्ट की सच्ची कहानी पर आधारित थी तो वहीं 'देव डी' शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास देवदास का आधुनिक रूपांतरण था. इसी तरह जहां 'ग़ुलाल' छात्र राजनीति को दर्शाती है, वहीं 'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' समाज में मौजूद विभिन्न अपराधों का फ़िल्मी रूपांतरण है.
'रमन राघव 2.0' असल सीरियल किलर से प्रेरित फ़िल्म थी तो 'सेक्रेड गेम्स' सिरीज़ विक्रम चंद्रा के उपन्यास का फ़िल्मांकन है.
हिंदी फ़िल्मों में डायलॉगबाज़ी का लंबा चलन रहा है, लेकिन अनुराग कश्यप की फ़िल्मों में आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग ज़्यादा होता है. बावजूद इसके उनके कई डायलॉग दर्शकों को भा जाते हैं और उनकी ज़ुबां पर चढ़ जाते हैं.
इस हफ़्ते रिलीज़ हुई अनुराग कश्यप की फ़िल्म 'मनमर्ज़ियां' आज के दौर की प्रेम कहानी है जिसकी पृष्ठभूमि पंजाब रखी गई है.
फ़िल्म के ट्रेलर में कई डायलॉग हैं जो लोगों को पसंद आ रहे हैं. जैसे, 'तू बंदा ना बड़ा सही है पर ज़िम्मेदारी के नाम पर ना ह** देता है', 'तू प्यार करने छतें टप के आ सकता है, तू घर नहीं आ सकता शादी की बात करने?'
हालांकि, फ़िल्म की कहानी, स्क्रीनप्ले और डायलॉग लेखिका कनिका ढिल्लों ने लिखे हैं और अनुराग कश्यप इस फ़िल्म से बतौर निर्देशक बाद में जुड़े.
कनिका कहती हैं, "फ़िल्म में जो भाषा है वो किरदारों से ही आई है. मेरा मक़सद था कि उनकी भाषा आम ही रखूं ताकि वो दर्शकों से जुड़ सके."
उन्होंने माना कि पंजाबी होने के कारण उस पृष्ठभूमि की कहानी उनके लिए आसान रही. फ़िल्म में 'फ़्यार' शब्द भी काफ़ी चर्चा में है जिसका श्रेय कनिका, अनुराग कश्यप को देती हैं.
वो कहती हैं, "फ़िल्म में दो प्रेमी जोड़े हैं जिसमें एक शारीरिक और एक भावुक तरीक़े से जुड़ा हुआ है. दोनों के प्रेम को एक शब्द में जोड़ने के लिए अनुराग ने 'फ़्यार' शब्द इजाद किया, जो गाने के ज़रिये फ़िल्म के डायलॉग का हिस्सा भी बन गया है."
अनुराग कश्यप की फ़िल्म 'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' के डायलॉग बहुत मशहूर हुए थे. 'मारेंगे नहीं सा** को, कह के लेंगे', 'बेटा, तुमसे ना हो पायेगा', 'बाप का, दादा का, भाई का, सबका बदला लेगा तेरा फैजल', 'ये वासेपुर है, यहाँ कबूतर भी एक पंख से उड़ता है और दूसरे से अपनी इज़्जत बचाता है.'
गैंग्स ऑफ़ वासेपुर की कहानी ज़ीशान क़ादरी ने लिखी थी जिनका ताल्लुक वासेपुर से ही है. फ़िल्म के किरदार और उनके डायलॉग को दर्शकों ने बहुत पसंद किया. फ़िल्म में मनोज बाजपेई, नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी, पंकज त्रिपाठी, हुमा कुरैशी, ऋचा चड्ढा और कई बेहतरीन अभिनेताओं ने काम किया था.
वरिष्ठ पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज अनुराग कश्यप की फ़िल्मों की भाषा पर कहते हैं, "अनुराग हिंदी समाज से जुड़े हुए हैं. उनकी पढ़ाई भी हिंदी में हुई है. वो हिंदी की अच्छी जानकारी रखने वाले निर्देशक हैं, जो आजकल मुंबई के निर्देशकों में कम नज़र आता है."
"इसलिए उनकी फ़िल्मों में संवाद आम बोलचाल की भाषा में होते हैं. उनकी फ़िल्मों में डायलॉगबाज़ी या किताबी भाषा नहीं होती है."स साल अनुराग कश्यप की सिरीज़ 'सेक्रेड गेम्स' भी आई, जिसे बहुत तारीफ़ें मिलीं और उसके कई डायलॉग मशहूर हुए.
'कुकू का जादू', 'कभी-कभी लगता है अपुन ही भगवान है', 'अपुन अश्वत्थामा है कभी नहीं मरेगा', 'अपुन को अंदर से आवाज़ आती थी की मुक्ति देदे इस हरामी को.' सेक्रेड गेम्स में बतौर लेखक थे वरुण ग्रोवर, जिन्हे फ़िल्मों में गीत लिखने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है.में आई फ़िल्म 'देव डी' ने अनुराग कश्यप के लिए हिंदी सिनेमा में निर्देशन के दरवाज़े खोले थे. फ़िल्म का डायलॉग 'कई चीज़ें इतनी अच्छी लगने लगती हैं कि बाकी सब बुरी लगने लगती हैं', 'दिल्ली में बिल्ली मारलो, खालो, पालो नहीं, बहुत महंगा पड़ता है' मशहूर हुआ.
फ़िल्म का गाना 'इमोशनल अत्याचार' भी काफ़ी पसंद किया गया था.
फ़िल्म संगीतकार अमित त्रिवेदी कहते हैं, "बतौर फ़िल्म संगीतकार देव डी मेरी पहली फ़िल्म थी. अनुराग कश्यप एक ऐसे निर्देशक हैं जो आपको पूरी आज़ादी देते हैं. देव डी में 'इमोशनल अत्याचार' और मनमर्ज़ियाँ में 'फ़्यार' जैसे शब्द उन्हीं की देन हैं."में अनुराग कश्यप की फ़िल्म 'रमन राघव' आई थी जिसमें नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी और विक्की कौशल अहम भूमिका में नज़र आये थे.
फ़िल्म के डायलॉग भी बहुत लोकप्रिय हुए थे जिसमें शामिल हैं, 'भगवान का सीसीटीवी हूँ मैं', 'अपुन का बाप अपुन को लोमड़ी बोलता था, बोलता था रात में मेरा आँख चमकने लगता है', 'क्या नाम है तेरा? पॉकेट! तू छोटा है ना तू पॉकेट. कोई पूछेगा काइको मारा तुझे, तो मैं बोलेगा अपुन ने तो पॉकेट मारा बस.'
अजय ब्रह्मात्मज आगे कहते हैं, "अनुराग की फ़िल्मों में अधिकतर अभिनेता नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा (एनएसडी) और हिंदी भाषी प्रदेश से होते हैं और जब उन्हें इस तरह के डायलॉग मिलते हैं तो उन्हें पता होता है कि शब्दों का सही ठहराव और उच्चारण क्या है."

Wednesday, September 12, 2018

क्या वाकई संघ से हमदर्दी रखते थे सरदार पटे

इस छोटे से वाक्य में गहरे अर्थ छिपे हैं, ये कि हिंदू पीड़ित हैं, अन्याय के शिकार हैं और उन्हें अपने अधिकार हासिल करने के लिए धर्मयुद्ध लड़ना होगा. इसके बाद वो हनुमान की कथा सुनाने लगे कि कैसे उन्होंने दृढ़ संकल्प से समुद्र पार कर लिया.
उन्होंने कहा, "हिंदुओं के सारे काम सबके कल्याण के लिए होते हैं, हिंदू कभी किसी का विरोध करने के लिए नहीं जीते. दुनिया भर में कीटनाशक इस्तेमाल होते हैं, लेकिन हिंदू वह समाज है जिसने कीट-पतंगों के जीवित रहने के अधिकार को स्वीकार किया." उन्होंने बताया कि हिंदू कितने सहिष्णु हैं, लेकिन मौजूदा हालात में कीड़े-मकौड़े किनको कहा जा रहा है, ये उन्होंने लोगों की कल्पना पर छोड़ दिया.
भागवत ने कहा कि "हम किसी का विरोध नहीं करते, लेकिन ऐसे लोग हैं जो हमारा विरोध करते हैं, ऐसे लोगों से निबटना होगा, और उसके लिए हमें हर साधन, हर उपकरण चाहिए ताकि हम अपनी रक्षा कर सकें कि वे हमें नुकसान न पहुंचा सकें." वे लोग कौन हैं फिर नहीं बताया गया, सब जानते तो हैं ही.
मोहन भागवत ने एक बेहद ज़रूरी बात बताई जिससे संघ की कार्यशैली का अंदाज़ा मिलता है. उन्होंने विस्तार से समझाया किस तरह लोगों को एक-दूसरे का साथ देना चाहिए, न कि एक-दूसरे का विरोध करना चाहिए. उन्होंने कहा कि सबको अपने-अपने तरीक़े से लक्ष्य को ध्यान में रखकर, अपने आगे चल रहे लोगों से कदम मिलाकर चलना चाहिए.
उन्होंने अँग्रेज़ी का मुहावरा इस्तेमाल किया, 'लर्न टू वर्क टूगेदर सेपरेटली' यानी साथ मिलकर अलग-अलग काम करना सीखें. यही संघ के काम करने का तरीका है, वह सैकड़ों छोटे संगठनों के ज़रिए काम करता है, सब अलग-अलग काम करते हैं और सब एक ही लक्ष्य के लिए काम करते हैं, वक़्त-ज़रूरत के हिसाब रास्ते चुनते हैं, लेकिन उनके किसी भी काम की कोई ज़िम्मेदारी संघ की नहीं होती.
एक-दूसरे से दूरी रखते हुए, निकटता बनाए रखना और एक तरह से अदृश्य शक्ति में बदल जाना यही संघ का मायावी रूप रहा है. मिसाल के तौर पर अगर किसी अवैध या हिंसक गतिविधि में बजरंग दल या विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता पकड़े जाते हैं, ऐसा अनेक बार हो चुका है, तो कोई ये नहीं कह पाता कि संघ का इसमें कोई हाथ है क्योंकि यहीं 'वर्किंग टूगेदर सेपरेटली' काम आता है, जिसका ज्ञान शिकागो में मिला.
भागवत ने कहा कि महाभारत में कृष्ण युधिष्ठिर को कभी रोकते-टोकते नहीं हैं, युधिष्ठिर जो हमेशा सच बोलने की वजह से धर्मराज कहे जाते हैं, "कृष्ण के कहने पर वही युधिष्ठिर लड़ाई के मैदान में ऐसा कुछ कहते हैं जो सच नहीं है". उन्होंने ज़्यादा विवरण नहीं दिया, उनका इशारा युधिष्ठिर के उस अर्धसत्य की तरफ़ था जब उन्होंने कहा था-अश्वत्थामा मारा गया.
भागवत का इशारा यही था कि परम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नेतृत्व अगर झूठ बोले या बोलने को कहे तो इसमें कोई बुराई नहीं है, मतलब साफ़ था कि कोई धर्मराज से बड़ा सत्यवादी बनने की कोशिश न करे. उन्होंने कहा कि सबको अपनी भूमिका अदा करनी चाहिए, रामलीला की तरह जिसमें कोई राम बनता है, कोई रावण, लेकिन सबको असल में याद रखना चाहिए वे कौन हैं और उनका लक्ष्य क्या है.
अब उन्हें यह बताने की ज़रूरत क्यों पड़ने लगी कि वह लक्ष्य क्या है? वह लक्ष्य हिंदू राष्ट्र की स्थापना है.
अपने 41 मिनट लंबे भाषण में उन्होंने विवेकानंद का नाम सिर्फ़ एक बार यह साबित करने के लिए लिया कि वे जो कह रहे हैं वह सही है. वैसे भी संघ के लोग कभी नहीं बताते विवेकानंद, भगत सिंह, सरदार पटेल या महात्मा गांधी या किसी दूसरी अमर विभूति ने दरअसल कहा क्या था क्योंकि उसमें बड़े ख़तरे हैं.

Saturday, September 1, 2018

中国紧盯南极资源

庞大的中国红色雪龙号破冰船本周四开始了155天的南极之旅。本次雪龙号执行的是中国第30次南极考察任务,而船上256名船员中很多都是前往南极寻找陨石的科研工作者。雪龙号还搭载了用于建立中国第四座南极科考站的建筑材料。这座名为“泰山”的科考站将建在南极东部澳大利亚声称拥有主权的区域,地下蕴藏着尚未探明的煤炭、铁矿石、锰和碳氢化合物资源。

1960年,也就是《南极条约》生效前一年,一位地质学家在美国科学院当众宣称“不值得为了南极的资源花一分钱”。但如今,当世界化石燃料资源日益紧张、能源需求不断飙升之时,各国都不惜投入重金希望开采世界上最后一个尚未开发的大洲的资源。

资源短缺的中国毫不掩饰其对极地地区资源的兴趣。根据中国政府网站发布的消息,中国国家主席习近平在今年七月一次政治局委员会会议上强调极地勘探对于“利用海洋和极地资源”十分重要。

在北极地区,北极委员会已经授予了中国观察员身份,中国在这一地区的影响力因此大增。在南极地区,中国正在快速兴建科考站,希望以此在这片主权尚存争议的大陆上确立自己的地位。2003年一年,中国南极项目总花费1200万英镑;到了2013年这一数字已经上升至3500万英镑,占到中国两极项目预算的80%。

《南极环境保护议定书》第七条规定,禁止科学研究之外与矿产资源有关的活动。但这条2048年将接受复审的规定允许各国进行地质监测。中国海洋大学法律与政治教授郭培清表示:“我们有必要充分了解南极大陆上的资源状况。中国对南极大陆的勘探就像下棋一样。在全球博弈中抢占先机十分重要。我们不知道棋局何时开始,但必须提早占据立足点。”

在极地开发传统强国资金紧张之时,印度、韩国和中国等新势力异军突起。对于那些重视《南极条约》生态保护作用的人士来说,一些国家对这片科学保护区内资源的关注值得忧虑。“南极治理的一个严重问题就是对各国的行为缺少真正有效的监控,”安妮-玛丽·布雷迪表示。她撰写的一本关于中国极地战略的书即将问世。

布雷迪认为,到了2048年许多国家的能源需求将与今天不同。罗伊研究所称,如果最终证明南极地区的确如此前预测的那样蕴藏着2000亿桶石油资源,那么南极洲的石油储备将位列世界第三。南极地区还拥有丰富的淡水资源,而随着150万平方公里的大陆冰盖在常年高温下融化,缺水的世界将到处寻找淡水水源。

南极事关重大。作为碳汇,南极洲在世界气候中扮演举足轻重的角色。南极底水——世界上温度最低、含氧量最高的深层水体——为全世界的海洋提供氧气,而过度捕捞和近海钻井将减少南极底水的含氧量,损害其功能。对南极生态系统至关重要的磷虾遭到过度捕捞、美露鳕濒临灭绝的现象早就引起了环保组织的担忧。

在南极地区,任何决策均要经各国一致同意才能做出。在利益不同的各国都努力争取私利的时候,我们保护南极生态的能力越来越弱。旨在保护海洋生物的国际组织已经无力推动新的措施。在南极海洋生物资源养护委员会上周的一次会议上,两项设立新的海洋保护区的动议因中国、俄罗斯和乌克兰担心捕鱼会遭到限制而搁浅。

南极和南大洋联盟执行总监詹姆斯·巴恩斯说:“其他地方的鱼已经要捞尽了,人们想去南极也是在所难免,但我们并不是没办法阻止他们。”