Wednesday, September 12, 2018

क्या वाकई संघ से हमदर्दी रखते थे सरदार पटे

इस छोटे से वाक्य में गहरे अर्थ छिपे हैं, ये कि हिंदू पीड़ित हैं, अन्याय के शिकार हैं और उन्हें अपने अधिकार हासिल करने के लिए धर्मयुद्ध लड़ना होगा. इसके बाद वो हनुमान की कथा सुनाने लगे कि कैसे उन्होंने दृढ़ संकल्प से समुद्र पार कर लिया.
उन्होंने कहा, "हिंदुओं के सारे काम सबके कल्याण के लिए होते हैं, हिंदू कभी किसी का विरोध करने के लिए नहीं जीते. दुनिया भर में कीटनाशक इस्तेमाल होते हैं, लेकिन हिंदू वह समाज है जिसने कीट-पतंगों के जीवित रहने के अधिकार को स्वीकार किया." उन्होंने बताया कि हिंदू कितने सहिष्णु हैं, लेकिन मौजूदा हालात में कीड़े-मकौड़े किनको कहा जा रहा है, ये उन्होंने लोगों की कल्पना पर छोड़ दिया.
भागवत ने कहा कि "हम किसी का विरोध नहीं करते, लेकिन ऐसे लोग हैं जो हमारा विरोध करते हैं, ऐसे लोगों से निबटना होगा, और उसके लिए हमें हर साधन, हर उपकरण चाहिए ताकि हम अपनी रक्षा कर सकें कि वे हमें नुकसान न पहुंचा सकें." वे लोग कौन हैं फिर नहीं बताया गया, सब जानते तो हैं ही.
मोहन भागवत ने एक बेहद ज़रूरी बात बताई जिससे संघ की कार्यशैली का अंदाज़ा मिलता है. उन्होंने विस्तार से समझाया किस तरह लोगों को एक-दूसरे का साथ देना चाहिए, न कि एक-दूसरे का विरोध करना चाहिए. उन्होंने कहा कि सबको अपने-अपने तरीक़े से लक्ष्य को ध्यान में रखकर, अपने आगे चल रहे लोगों से कदम मिलाकर चलना चाहिए.
उन्होंने अँग्रेज़ी का मुहावरा इस्तेमाल किया, 'लर्न टू वर्क टूगेदर सेपरेटली' यानी साथ मिलकर अलग-अलग काम करना सीखें. यही संघ के काम करने का तरीका है, वह सैकड़ों छोटे संगठनों के ज़रिए काम करता है, सब अलग-अलग काम करते हैं और सब एक ही लक्ष्य के लिए काम करते हैं, वक़्त-ज़रूरत के हिसाब रास्ते चुनते हैं, लेकिन उनके किसी भी काम की कोई ज़िम्मेदारी संघ की नहीं होती.
एक-दूसरे से दूरी रखते हुए, निकटता बनाए रखना और एक तरह से अदृश्य शक्ति में बदल जाना यही संघ का मायावी रूप रहा है. मिसाल के तौर पर अगर किसी अवैध या हिंसक गतिविधि में बजरंग दल या विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता पकड़े जाते हैं, ऐसा अनेक बार हो चुका है, तो कोई ये नहीं कह पाता कि संघ का इसमें कोई हाथ है क्योंकि यहीं 'वर्किंग टूगेदर सेपरेटली' काम आता है, जिसका ज्ञान शिकागो में मिला.
भागवत ने कहा कि महाभारत में कृष्ण युधिष्ठिर को कभी रोकते-टोकते नहीं हैं, युधिष्ठिर जो हमेशा सच बोलने की वजह से धर्मराज कहे जाते हैं, "कृष्ण के कहने पर वही युधिष्ठिर लड़ाई के मैदान में ऐसा कुछ कहते हैं जो सच नहीं है". उन्होंने ज़्यादा विवरण नहीं दिया, उनका इशारा युधिष्ठिर के उस अर्धसत्य की तरफ़ था जब उन्होंने कहा था-अश्वत्थामा मारा गया.
भागवत का इशारा यही था कि परम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नेतृत्व अगर झूठ बोले या बोलने को कहे तो इसमें कोई बुराई नहीं है, मतलब साफ़ था कि कोई धर्मराज से बड़ा सत्यवादी बनने की कोशिश न करे. उन्होंने कहा कि सबको अपनी भूमिका अदा करनी चाहिए, रामलीला की तरह जिसमें कोई राम बनता है, कोई रावण, लेकिन सबको असल में याद रखना चाहिए वे कौन हैं और उनका लक्ष्य क्या है.
अब उन्हें यह बताने की ज़रूरत क्यों पड़ने लगी कि वह लक्ष्य क्या है? वह लक्ष्य हिंदू राष्ट्र की स्थापना है.
अपने 41 मिनट लंबे भाषण में उन्होंने विवेकानंद का नाम सिर्फ़ एक बार यह साबित करने के लिए लिया कि वे जो कह रहे हैं वह सही है. वैसे भी संघ के लोग कभी नहीं बताते विवेकानंद, भगत सिंह, सरदार पटेल या महात्मा गांधी या किसी दूसरी अमर विभूति ने दरअसल कहा क्या था क्योंकि उसमें बड़े ख़तरे हैं.

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