स्वीनी आगे लिखते हैं, "ये देख कर कुछ मज़दूरों की हँसी निकल गई. लेकिन
जब 'सेक्यूरिटेट' के लोगों ने उन्हें घूर कर देखा तो वो दूसरी तरफ़ देखने
लगे."
"सेक्यूरिटेट का एक बंदा चासेस्कू के जूतों पर लगी गंदगी को
साफ़ करने लगा. चासेस्कू अपने गंदे पैरों के साथ अपनी कार की तरफ़ बढ़े.
जहाँ-जहाँ उनके क़दम पड़े, उनके जूतों पर लगी गंदगी के निशान छूटते गए.
किसी ने एक शब्द भी नहीं कहा. न ही कोई हँसा, मानो कोई एटम बम फूट गया हो."
"कल्पना कीजिए कि चाचेस्कू का क्या हाल हुआ होगा जिनकी सफ़ाई के प्रति इतनी
दीवानगी थी कि वो 'इनफ़ेक्शन' से बचने के लिए एक दिन में बीस बार अपने हाथ
अल्कोहल से धोया करते थे."
"बाद में 'सिक्यूरिटेट' ने बाकायदा इसकी
जाँच कराई, लेकिन ये पता नहीं चल सका कि इसका ज़िम्मेदार कौन था. बहरहाल
अफ़सरों को निर्देश दिए
सोवियत कैंप में रहने के बावजूद चाचेस्कू को सोवियत संघ को तंग करने में
बहुत मज़ा आता था और वो अक्सर ऐसे विश्व नेताओं को अपने यहाँ आमंत्रित
करते थे जो सोवियत संघ की आलोचना किया करते थे.
1966 में उन्होंने
चीन के प्रधानमंत्री चू एन लाई को रोमानिया बुलाया और फिर 1967 में अमरीका के भावी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन उनके मेहमान बने.
हाल ही में छपी किताब 'हाऊ टू बी ए डिक्टेटर'
लिखने वाले फ़्रैंक डिकोटेर लिखते हैं, "चाचेस्कू का सबसे बड़ा क्षण तब
आया जब सोवियत संघ ने साम्यवाद के ख़िलाफ़ विद्रोह को दबाने के लिए
चेकोस्लवाकिया पर हमला कर दिया."
बुल्गारिया, पोलैंड और हंगरी ने
सोवियत संघ के समर्थन में अपने सैनिक भेजने का वादा किया, लेकिन रोमानिया
सोवियत संघ के समर्थन में नहीं उतरा.
"जब प्राग में सोवियत टैंक
घुसे, चाचेस्कू ने पैलेस स्कवायर में एक बड़ी जनसभा को संबोधित करते हुए लियोनिद ब्रेझनेव के इस कदम की निंदा की और इसे एक बड़ी ग़लती बताया. उन्होंने कहा कि इससे यूरोप में शाँति को बहुत बड़ा ख़तरा पैदा हो गया है. ये कह कर वो रातोंरात ऱाष्ट्रीय हीरो बन गए."
जब चाचेस्कू चीन गए तो
वहाँ का पूरे नेतृत्व ने हवाई अड्डे पर उपस्थित हो कर उनका स्वागत किया.
सड़क के दोनों ओर हज़ारों बीजिंगवासी हाथ हिलाहिला कर उनके प्रति अपना
सम्मान व्यक्त कर रहे थे.
बीजिंग के थियानानमेन चौक में उनके लिए एक
बड़े जिमनास्टिक शो का भी आयोजन किया गया. लेकिन हिटलर की इटली की पहली
यात्रा की तरह चाचेस्कू ये नहीं ताड़ पाए कि चीन की उनके प्रति इतनी
गर्मजोशी महज़ दिखावा थी.
चीन से लौट कर चाचेस्कू ने अपने देश में भी
एक तरह की मिनी साँस्कृतिक क्राँति की शुरुआत की. प्रेस पर सेंसरशिप में
थोड़ी ढील दी गई और टेलिविजन पर कुछ विदेशी कार्यक्रम दिखाए जाने लगे.
लेकिन ये छूट संकुचित थी, क्योंकि चाचेस्कू ने साफ़ कर दिया कि उनकी समाजवादी सरकार में लेनिनवाद और मार्क्सवाद को ही प्रमुखता दी जाती रहेगी.
चाचेस्कू ने अपने बारे में कई भ्राँतियाँ प्रचलित कराई. मसलन उनके एक फ़्रेंच जीवनीकार माइकल पियर हेमलेट ने लिखा कि वो अत्यंत ग़रीबी में पैदा
हुए थे और अपने स्कूल नंगे पैर जाया करते थे.
1972 में डोनल्ड कैचलोव
ने लंदन में उनकी जीवनी प्रकाशित करवाई जिससे चाचेस्कू के मिथक को फैलने
में और मदद मिली. इस पुस्तक में लिखी एक एक बात का चाचेस्कू ने खुद अनुमोदन
किया और ये भी बताया कि इसकी कितनी प्रतियाँ छापी जाएं.
चाचेस्कू के
प्रति चापलूसी इस हद तक बढ़ गई कि रोमानिया का प्रमुख अख़बार 'सिनतिया' उनको रोमानिया का जूलियस सीज़र, नेपोलियन, पीटर महान और लिंकन कह कर
पुकारने लगा.
उनकी 60वीं सालगिरह पर रोमानिया के एक और राजनेता कौंसटानटिन पिरवुलेस्कू ने उन्हें रोमानिया के इतिहास के सबसे लोकप्रिय
नेता की संज्ञा दे डाली.
उनकी व्यक्ति पूजा इस हद तक बढ़ गई कि उनके
नाम को बड़े अक्षरों में लिखा जाने लगा. उनको दूसरी बार रोमानिया के सबसे
बड़े नागरिक सम्मान 'हीरो ऑफ़ द सोशलिस्ट रिपब्लिक ऑफ़ रोमानिया' से
सम्मानित किया गया.
यूगोस्लाविया ने उन्हें 'हीरो ऑफ़ सोशलिस्ट लेबर' का सम्मान दिया और अमरीका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने उनका और उनकी
पत्नी का व्हाइट हाउज़ में ज़ोरदार स्वागत किया.
गए कि वो इसका कभी किसी से ज़िक्र न करें.
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